Tuesday, 12 January 2016

कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं

कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते है

आप.आप किसी को कहिये कि भाई भक्ति कीजिये.प्रभु की भक्ति करने के लिए ही तो मनुष्य जीवन मिला है.तो आप जानते हैं कि लोग क्या कहते हैं.कह देते हैं की अरे भाई अभी तो बहुत काम है,बच्चों को पालना है,पोसना है,नौकरी करनी है.इतने busy हैं हम.time कहाँ है जो भक्ति करे.कुछ तो ये भी कह देते हैं कि भक्ति करना तो बेकार लोगों का काम है.हमारे पास तो बहुत काम है.कुछ लोग कहते हैं कि जब free हो जायेंगे तब भगवान के बारे में सोचेंगे.अभी तो बहुत व्यस्त हैं.

भगवान जानते हैं कि इंसान उन तक न आने के लिए बहुत बहाने बनाता है.इसीलिए तो भगवान कहते हैं :

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ ॥(भगवद्गीता,8.7)

अर्थात्

हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो भगवान देखिये यहाँ कितना सुन्दर तरीका आपको बता रहे हैं.कैसे आप भक्ति में रहे.कैसे आप भगवान का ध्यान करे.कईबार लोग मुझसे पूछते हैं कि हम कभी मंदिर नही जाते,हम पूजा-पाठ नही करते तो इसका मतलब क्या हम पापी हैं?भगवान ने देखिये यहाँ नही कहा है कि आप मेरे दरवाजे पर आईये,मेरे दर पर आईये.भगवान ने कहा है कि जहाँ भी आप हैं,जो कुछ कर रहे हैं करते रहिये.किसी चीज को छोडने की जरूरत नही है.कुछ मत छोडिये लेकिन मेरा चिंतन अवश्य कीजिये.कैसे ,सर्वेषु कालेषु,हर वक्त,हर समय,हर पल,हर क्षण मेरा स्मरण करते रहिये.

तो भगवान ने बहुत सुन्दर नुस्खा बताया है कि कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं,भगवान को याद करके.है न.भगवान को याद करना बहुत सहज है.बहुत ही सहज है.लेकिन इसके लिए हमें ये याद रखना होगा कि भगवान से हमारा संबंध क्या है?अगर आपको कोई संबंध नजर नही आता तो आप कोई संबंध बना लीजिए.कोई संबंध जोड़ लीजिए.फिर उस संबंध को पोषित कीजिये.धीरे-धीरे,धीरे-धीरे आप उस संबंध के आदी हो जायेंगे और जब वो संबंध आप भगवान से अच्छी तरह से जोड़ लेंगे तब आपको आदत हो जायेगी भगवान के बारे में सोचने की.यही तरीका है जिससे आप हर समय,हर क्षण भक्ति कर सकते हैं और आपका समय भी जाया नही होगा.

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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो देखिये यहाँ अर्जुन को कहा गया है कि तुम्हे मेरा चिंतन करना चाहिए और युद्ध भी करना चाहिए.दोनों चीजें करनी चाहिए.कभी आपने सुना है कि दो चीजें,दो काम एक साथ हो.थोडा मुश्किल है न.दो काम एक साथ कैसे हो सकता है.लेकिन भगवान कहते हैं कि मन से मेरे बारे में सोचो और तन से अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करो.अर्जुन योद्धा थे तो ये अर्जुन का कर्त्तव्य था कि वे युद्ध करे.तो भगवान ने कहा कि देखिये जब आप इतने हिंसक कार्य को कर रहे हैं तो बेशक ये हिंसक कार्य पाप है.लेकिन याद रखना कि ये मेरी आज्ञा से आप कर रहे हैं.मैंने आपको आज्ञा दी है कि आप जो अन्यायी लोग हैं उनका वध करे.

जैसे कि अगर सरकार किसी सैनिक को यह आज्ञा देती है कि वह front पर जाकर लड़ाई करे और वे जब अधिकाधिक शत्रुओं का वध करते हैं तो फिर सरकार उन्हें मेडल देती है.यह पाप नही है.इसीप्रकार जब भगवान की आज्ञा है की आप जाकर के आतातायी लोगों का वध करे.अधर्म का नाश करे और धर्म की स्थापना कीजिये तब ये पाप नही है.और वो भी किसतरह से कीजिये.मेरे लिए कीजिये.मुझे याद करते हुए कीजिये.

तो देखिये याद करने का काम आँखों का नही.याद करने का काम नाक का नही है.याद करने का काम कान का नही है.याद करने का काम सिर्फ और सिर्फ मन का है.शुद्ध मन का है.

तो मन युद्ध नही कर रहा.तन युद्ध कर रहा है.मन खाना नही बना रहा तन खाना बना रहा है.मन पढाई नही कर रहा तन पढाई कर रहा है.है न.तो भगवान ने यहाँ तरीका बताया है कि भाई जो कुछ कर्त्तव्य आपका है उस कर्त्तव्य को आप पूरा करिये.काम करने के लिए भगवान मना नही करते.अर्जुन ने एकबार कहा कि मै जाकर के संन्यास ले लेता हूँ.किसी गुफा में बैठकर के भगवान का नाम लूँगा.ये हिंसा मुझे नही करनी है.तो भगवान ने कहा कि नही,ये तो आपका कर्त्तव्य है क्योंकि आप योद्धा है,क्षत्रिय हैं.

तो इसीप्रकार से अगर एक student कहे ,एक विद्यार्थी कहे कि नही मुझे तो भगवान का नाम लेना है ,मुझे पढ़ाई नही करनी.तो आप इस श्लोक से सीख सकते हैं.भगवान कहते हैं कि नही,पढाई करनी है.अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करना हैऔर उस पढाई को भी मुझे समर्पित कर दो.और जब तुम ऐसा करोगे तो उस कार्य से बंधोगे नही.पहली बात.और दूसरी बात कि तुम मेरा चिंतन करो.मेरे बारे में सोचो,मेरे ख्यालों में डूबो.तुम ऐसा करोगे तो तुम सारे कामों को करते हुए भी मुक्त रहोगे और मुझे प्राप्त कर पाओगे.
श्रोत व्हाट्सअप ग्रुप भक्तिसागर

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