Saturday, 24 October 2015

श्रीरामचरितमानस- इन पांच कामों से हमेशा नुकसान ही होता है, इन्हें छोड़ देना चाहिए


गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीराम चरित मानस के अरण्यकाण्ड में जब शूर्पणखा लक्ष्मण के सामने प्रणय का प्रस्ताव रखती है तब लक्ष्मण कहते हैं कि-

सुंदरि सुनु मैं उन्ह कर दासा। पराधीन नहिं तोर सुपासा।।
प्रभु समर्थ कोसलपुर राजा। जो कछु करहिं उनहि सब छाजा।।

इस दोहे में लक्ष्मण शूर्पणखा से कहते हैं कि हे सुंदरी। मैं तो श्रीराम का सेवक हूं, मैं पराधीन हूं, अत: मुझे जीवन साथी बनाकर तुम्हें सुख प्राप्त नहीं होगा। तुम श्रीराम के पास जाओ, वे ही सभी काम करने में समर्थ हैं।

सेवक सुख चह मान भिखारी। ब्यसनी धन सुख गति विभिचारी।।
लोभी जसु चह चार गुमानी। नभ दुहि दूध चहत ए प्रानी।।

इस दोहे में लक्ष्मण ने 6 ऐसे पुरुषों के विषय में बात की है, जिनकी कुछ इच्छाएं पूरी होना असंभव ही है।

पहला पुरुष है सेवक-

यदि कोई सेवक सुख चाहता है तो उसकी यह इच्छा कभी भी पूरी नहीं हो सकती है। सेवक को सदैव मालिक यानी स्वामी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए तत्पर रहना होता है। अत: वह स्वयं के सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता।

दूसरा पुरुष है भिखारी- 

यदि कोई भिखारी ये सोचे कि उसे समाज में पूर्ण मान-सम्मान मिले, सभी लोग उसका आदर करे तो यह इच्छा कभी भी पूरी नहीं हो सकती है। भिखारी को सदैव लोगों की ओर से धिक्कारा ही जाता है, उन्हें हर बार अपमानित ही होना पड़ता है।

तीसरा पुरुष है व्यसनी यानी नशा करने वाला

यदि कोई व्यसनी (जिसे जूए, शराब आदि का नशा करने की आदत हो) यह इच्छा करे कि उसके पास सदैव बहुत सारा धन रहे तो यह इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती है। ऐसे लोगों के पास यदि कुबेर का खजाना भी हो तो वह भी खाली हो जाएगा। ये लोग सदैव दरिद्र ही रहते हैं। नशे की लत में अपना सब कुछ लुटा देते हैं।

चौथा पुरुष है व्यभिचारी
शास्त्रों के अनुसार व्यभिचार को भयंकर पाप माना गया है। यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफादार नहीं है और अन्य स्त्रियों के साथ अवैध संबंध रखता है तो उसे कभी भी सद्गति नहीं मिल सकती। ऐसे लोग का अंत बहुत बुरा होता है। जिस समय इनकी गुप्त बातें प्रकट हो जाती हैं, तभी इनके सारे सुख खत्म हो जाते हैं। साथ ही, ऐसे लोग भयंकर पीड़ाओं को भोगते हैं।

पांचवां पुरुष है लोभी यानी लालची
जो लोग लालची होते हैं, वे हमेशा सिर्फ धन के विषय में ही सोचते हैं, उनके लिए यश की इच्छा करना व्यर्थ है। लालच के कारण घर-परिवार और मित्रों को भी महत्व नहीं देते। धन की कामना से वे किसी का भी अहित कर सकते हैं। इस कारण इन्हें यश की प्राप्ति नहीं होती है। अत: लोभी इंसान की यश पाने की इच्छा कभी भी पूरी नहीं हो सकती है।

छठां पुरुष है अभिमानी
यदि कोई व्यक्ति घमंडी है, दूसरों को तुच्छ समझता है और स्वयं श्रेष्ठ तो ऐसे लोगों को जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता है। आमतौर पर ऐसे लोग चारों फल- अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष, एक साथ पाना चाहते हैं, लेकिन यह इच्छा पूरी होना असंभव है। शास्त्रों में कई ऐसे अभिमानी पुरुष बताए गए हैं, जिनका नाश उनके घमंड के कारण ही हुआ है। रावण और कंस भी वैसे ही अभिमानी थे।

आगे का प्रसंग इस प्रकार है-

श्रीरामचरित मानस में आगे लिखा है-

पुनि फिरि राम निकट सो आई। प्रभु लछिमन पहिं बहुरि पठाई।।
लक्षिमन कहा तोहि सो बरई। जो तृन तोरि लाज परिहरई।।

इस दोहे में तुलसीदासजी ने लिखा है कि लक्ष्मण ने जब इस प्रकार शूर्पणखा को समझाया तो वह श्रीराम के पास गई और उनके सामने प्रणय का प्रस्ताव रखा। श्रीराम ने इस प्रस्ताव को अपनाने से इंकार किया और शूर्पणखा को पुन: लक्ष्मण के पास ही भेज दिया।

लक्ष्मण ने शूर्पणखा से कहा कि तुम्हारा वरण वही इंसान कर सकता है जो लज्जा यानी शर्म को त्याग सकता है। यानी कोई बेशर्म इंसान ही तुम्हारे प्रणय प्रस्ताव को स्वीकार कर सकता है।

तब खिसिआनि राम पहिं गई। रूप भयंकर प्रगटत भई।।
सीतहि सभय देखि रघुराई। कहा अनुज सन सयन बुझाई।।

लक्ष्मण द्वारा यह बात सुनकर रावण की बहन शूर्पणखा पुन: श्रीराम के पास गई और भयंकर राक्षसी रूप धारण कर लिया। इस रूप को देखकर सीता भयभीत हो गईं तब श्रीराम ने लक्ष्मण को इशारा किया कि वह शूर्पणखा को दंड दे।

श्रीराम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक और कान काट दिए।

एक श्राप के कारण धृतराष्ट्र जन्मे थे अंधे, जानिए धृतराष्ट्र से जुडी ऐसी ही खास बातें

महाभारत में धृतराष्ट्र अंधे थे, लेकिन उन्हें यह अंधापन पिछले जन्म में मिले एक श्राप के कारण मिला था। धृतराष्ट्र ने ही गांधारी के परिवार को मरवाया था। लेकिन क्यों मिला था उन्हें अंधें होने का श्राप और क्यों मरवाया था उन्होंने अपनी पत्नी गांधारी के परिवार को?  आइये जानते है धृतराष्ट्र से जुडी कुछ ऐसी ही खास बातें-


भीम को मार डालना चाहते थे धृतराष्ट्र
भीम ने धृतराष्ट्र के प्रिय पुत्र दुर्योधन और दु:शासन को बड़ी निर्दयता से मार डाला था, इस कारण धृतराष्ट्र भीम को भी मार डालना चाहते थे। जब युद्ध समाप्त हो गया तो श्रीकृष्ण के साथ युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव महाराज धृतराष्ट्र से मिलने पहुंचे। युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र को प्रणाम किया और सभी पांडवों ने अपने-अपने नाम लिए, प्रणाम किया। श्रीकृष्ण महाराज के मन की बात पहले से ही समझ गए थे कि वे भीम का नाश करना चाहते हैं। धृतराष्ट्र ने भीम को गले लगाने की इच्छा जताई तो श्रीकृष्ण ने तुरंत ही भीम के स्थान पर भीम की लोहे की मूर्ति आगे बढ़ा दी। धृतराष्ट्र बहुत शक्तिशाली थे, उन्होंने क्रोध में आकर लोहे से बनी भीम की मूर्ति को दोनों हाथों से दबोच लिया और मूर्ति को तोड़ डाला।

मूर्ति तोड़ने की वजह से उनके मुंह से भी खून निकलने लगा और वे जमीन पर गिर गए। कुछ ही देर में उनका क्रोध शांत हुआ तो उन्हें लगा की भीम मर गया है तो वे रोने लगे। तब श्रीकृष्ण ने महाराज से कहा कि भीम जीवित है, आपने जिसे तोड़ा है, वह तो भीम के आकार की मूर्ति थी। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने भीम के प्राण बचा लिए।

धृतराष्ट्र थे जन्म से अंधे
महाराज शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र हुए विचित्रवीर्य और चित्रांगद। चित्रांगद कम आयु में ही युद्ध में मारे गए। इसके बाद भीष्म ने विचित्रवीर्य का विवाह काशी की राजकुमारी अंबिका और अंबालिका से करवाया। विवाह के कुछ समय बाद ही विचित्रवीर्य की भी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। अंबिका और अंबालिका संतानहीन ही थीं तो सत्यवती के सामने यह संकट उत्पन्न हो गया कि कौरव वंश आगे कैसे बढ़ेगा।

वंश को आगे बढ़ाने के लिए सत्यवती ने महर्षि वेदव्यास से उपाय पूछा। तब वेदव्यास से अपनी दिव्य शक्तियों से अंबिका और अंबालिका से संतानें उत्पन्न की थीं। अंबिका ने महर्षि के भय के कारण आंखें बद कर ली थी तो इसकी अंधी संतान के रूप में धृतराष्ट्र हुए। दूसरी राजकुमारी अंबालिका भी महर्षि से डर गई थी और उसका शरीर पीला पड़ गया था तो इसकी संतान पाण्डु हुई। पाण्डु जन्म से ही कमजोर थे। दोनों राजकुमारियों के बाद एक दासी पर भी महर्षि वेदव्यास ने शक्तिपात किया था। उस दासी से संतान के रूप में महात्मा विदुर उत्पन्न हुए।

एक श्राप के कारण धृतराष्ट्र जन्मे थे अंधे :
धृतराष्ट्र अपने पिछले जन्म मैं एक बहुत दुष्ट राजा था। एक दिन उसने देखा की नदी मैं एक हंस अपने बच्चों के साथ आराम से विचरण कर रहा हे। उसने आदेश दिया की उस हंस की आँख फोड़ दी जायैं और उसके बच्चों को मार दिया जाये। इसी वजह से अगले जन्म मैं वह अंधा पैदा हुआ और उसके पुत्र भी उसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुये जैसे उस हंस के।

अंधे होने के कारण धृतराष्ट्र से पहले पाण्डु बने थे राजा 
धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर के पालन-पोषण का भार भीष्म के ऊपर था। तीनों पुत्र बड़े हुए तो उन्हें विद्या अर्जित करने भेजा गया। धृतराष्ट्र बल विद्या में श्रेष्ठ हुए, पाण्डु धनुर्विद्या में और विदुर धर्म और नीति में पारंगत हो गए। तीनों पुत्र युवा हुए तो बड़े पुत्र धृतराष्ट्र को नहीं, बल्कि पाण्डु को राजा बनाया गया, क्योंकि धृतराष्ट्र अंधे थे और विदुर दासी पुत्र थे। पाण्डु की मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र को राजा बनाया गया। धृतराष्ट्र नहीं चाहते थे कि उनके बाद युधिष्ठिर राजा बने, बल्कि वे चाहते थे कि उनका पुत्र दुर्योधन राजा बने। इसी कारण वे लगातार पाण्डव पुत्रों की उपेक्षा करते रहे।

गांधार की राजकुमारी से विवाह
भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी गांधारी से कराया था। विवाह से पूर्व गांधारी को ये बात मालूम नहीं थी कि धृतराष्ट्र अंधे हैं। जब गांधारी को ये बात मालूम हुई तो उसने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। अब पति और पत्नी दोनों अंधे के समान हो गए थे। धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र और एक पुत्री थी। दुर्योधन सबसे बड़ा और सबसे प्रिय पुत्र था। दुर्योधन के प्रति धृतराष्ट्र को अत्यधिक मोह था। इसी मोह के कारण दुर्योधन के गलत कार्यों पर भी वे मौन रहे। दुर्योधन की गलत इच्छाओं को पूरा करने के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे। यही मोह पूरे वंश के नाश का कारण बना।

धृतराष्ट्र ने मरवाया था गांधारी के परिवार को 
ध्रतराष्ट्र का विवाह गांधार देश की गांधारी के साथ हुआ था। गंधारी की कुंडली मैं दोष होने की वजह से एक साधु के कहे अनुसार उसका विवाह पहले एक बकरे के साथ किया गया था। बाद मैं उस बकरे की बलि दे दी गयी थी। यह बात गांधारी के विवाह के समय छुपाई गयी थी. जब ध्रतराष्ट्र को इस बात का पता चला तो उसने गांधार नरेश सुबाला और उसके 100 पुत्रों को कारावास मैं डाल दिया और काफी यातनाएं दी।

एक एक करके सुबाला के सभी पुत्र मरने लगे। उन्हैं खाने के लिये सिर्फ मुट्ठी भर चावल दिये जाते थे। सुबाला ने अपने सबसे छोटे बेटे शकुनि को प्रतिशोध के लिये तैयार किया। सब लोग अपने हिस्से के चावल शकुनि को देते थे ताकि वह जीवित रह कर कौरवों का नाश कर सके। मृत्यु से पहले सुबाला ने ध्रतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की बिनती की जो ध्रतराष्ट्र ने मान ली। सुबाला ने शकुनि को अपनी रीढ़ की हड्डी क पासे बनाने के लिये कहा, वही पासे कौरव वंश के नाश का कारण बने।

शकुनि ने हस्तिनापुर मैं सबका विश्वास जीता और 100 कौरवों का अभिवावक बना। उसने ना केवल दुर्योधन को युधिष्ठिर के खिलाफ भडकाया बल्कि महाभारत के युद्ध का आधार भी बनाया।

...और धृतराष्ट्र चले गए वन में
युद्ध के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी, पांडवों के साथ एक ही महल रहने लगे थे। भीम अक्सर धृतराष्ट्र से ऐसी बातें करते थे जो कि उन्हें पसंद नहीं थीं। भीम के ऐसे व्यवहार से धृतराष्ट्र बहुत दुखी रहने लगे थे। वे धीरे-धीरे दो दिन या चार दिन में एक बार भोजन करने लगे। इस प्रकार पंद्रह वर्ष निकल गए। फिर एक दिन धृतराष्ट्र के मन में वैराग्य का भाव जाग गया और वे गांधारी के साथ वन में चले गए।

सभी कष्ट निवारण करता है अदभुत-बजरंग बाण-


आज के युग में हनुमान जी की शक्ति प्रथ्वी पे आज भी विद्धमान है- जिस मनुष्य को अकारण ही कोई कष्ट है या कोई आपका बुरा चाहता है अकारण ही अनिष्ट करने का प्रयास कर रहा है -या आपको भयानक स्वप्न आते है- या फिर घर में कलह या विशेष संकट है यदिकोई रोगी ठीक नहीं हो रहा है हनुमान चलीषा और बजरंग बान का दैनिक पाठ ही आपके कष्टों को दूर कर देता है बस ये याद रक्खे कि धन प्राप्ति या स्त्री वशीकरण के लिए हनुमान जी से प्रार्थना न करे-



जो व्यक्ति नित्य ही हनुमान चालीसा या हनुमान बाण का पाठ प्रतिदिन पूजा पाठ विधि-विधान से करता है | उसे भौतिक सुख की प्राप्ति, उच्च शिक्षा, परिवार में शांति मिलती है-

हनुमान जी की माता का नाम अंजना है-उनके पिता वायु देवता हैं-वायु के बिना मनुष्य का जीवन असंभव है | हनुमान जी को भूख लगी तब उन्होंने सूर्य भगवान को देखा-उन्होंने समझा लाल-लाल सुंदर मीठा फल है. हनुमान सूर्य को मुंह में दबाएं आकाश की ओर जा रहे थे | तब हनुमान ने सफेद ऐरावत पर सवार इंद्र को देखा व समझा कोई सफेद फल है | उधर भी झपट पड़े. देवता इंद्र बहुत क्रोधित हुए | अपने को हनुमान से बचाया | सूर्य को छुड़ाने के लिए हनुमान की ठुड्डी पर बज्र का प्रहार किया | वज्र के प्रहार से हनुमान का मुंह खुल गया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े | हनुमान को बेहोश देख कर वायु देवता ने क्रोध में आकर बहना बंद कर दिया. हवा रुक जाने के कारण तीनों लोकों के पशु-पक्षी मनुष्य देवी-देवतागण व्याकुल हो उठे | ब्रह्मा जी इंद्र सहित सभी देवताओं को लेकर वायु देवता के पास पहुंचे | उन्होंने आशीर्वाद देकर हनुमान जी को जीवित कर दिया. उन्होंने कहा कि आज से इस बालक पर किसी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ेगा | ठुड्डी वज्र से टूट गयी थी- इसलिए इनका नाम हनुमान पड़ा |

भगवान कृष्ण ने कहा है कि अंजनी पुत्र में मैं ही राम हूं, मैं ही हनुमान हूं, मैं ही योगीश्वर हूं | नवग्रहों के बाद तीन ग्रहों की खोज हुई. हर्षल, नेप्चयून और प्लूटो, जो ब्रह्मा विष्णु महेश हैं | जो हनुमान की निष्ठापूर्वक पूजा, उपासना करता है वह जातक सुखी रहता है | हनुमान जयंती पर्व हनुमान के जन्मदिवस पर मनाया जाता है-

सर्व प्रथम भगवान राम का  ध्यान करे | भगवान राम जहां हैं | वहां स्वयं भगवान हनुमान उपस्थित रहते हैं |यदि आपको किसी विशेष कार्य हेतु प्रयोग करना है तो आप ये विशिस्ट नियम से करे .

साधना के विशिष्ट नियम :-

किसी भी कार्य की प्राप्ति के लिए संकल्प करें | हनुमान जी की तस्वीर सामने रख कर पद्‌मासन में बैठ जायें | एक अखंड दीपक जलाकर हनुमान जी के मंत्रों का जाप करें | साधना में पवित्रता और ब्रह्‌मचर्य का पालन करें | हनुमान जी को गुड़ चना विशेष रूप से अर्पण करें | गुगृल का हवन करें-

हनुमान चालीसा का प्रतिदिन 11 पाठ करें | विशेष कार्यों में जातक हनुमान कवच प्राण प्रतिष्ठित धारण कर पंचमुखी हनुमान साधना करें | जातक मंगलवार के दिन उपवास करें | जातक को मंगलवार के दिन चमेली के तेल से हनुमान जी का स्नान कराएं एवं पीला सिंदुर घी में मिलाकर बजरंगबली को लगायें | शनि ग्रह का अनिष्ट प्रभाव चल रहा है-तो शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कर तिल के तेल का दीपक जलाकर 108 बार हनुमान बाण का पाठ करें | नवग्रह की शांति के लिए प्रतिदिन दो माला मंत्रों का जाप करें.

आपकी समस्या और समाधान:-

जब आप किसी कानूनी प्रक्रिया में फंसे हों. आप या आपके परिवार में कोई रोग से ग्रसित हो- किसी के द्वारा किया गया तंत्र  का प्रभाव हो और आपको या परिवार में किसी को भूत-प्रेत की ऊपरी बाधा हो आप शत्रुओं के जाल में फंसे हैं व अपने को निर्बल महसूस कर रहे हैं- कोई भी कार्य में सफलता रही मिल रही हो- जब आपके आत्मविश्वास या मनोबल की कमी हो- तब आप बिना चिंता किये अपनी समस्याओं के लिए करे सफलता अवस्य ही मिलेगी -

अगर आप किसी परिवार के अन्य सदस्य के लिए कर रहे है तब उसके नाम से संकल्प ले के भी कर सकते है ये आप गुरु निर्देशन या तंत्र साधक की सलाह से यह कार्य करें-

ब्रह्‌ममुहुर्त में जातक स्नानादि से निवृत होकर हनुमान यंत्र प्राण प्रतिष्ठित लेकर बाजोट(लकड़ी का पट्टा) पर लाल वस्त्र बिछाकर यंत्र स्थापित करें. यंत्र को चमेली के तेल से स्नान कराकर पीला सिंदूर घी में मिलाकर अर्पण करें. जातक लाल आसन पर पद्‌मासन में बैठें. 11 दीप प्रज्जवलित कर 108 बार हनुमान बाण का पाठ करें एवं दो माला मंत्रों का जाप करें. विशेष कार्य में रात्रि में पूजन करें-

मंत्र 1 - हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट.(जप के लिए मन्त्र )

मंत्र 2 - ऊं नमो भगवते आंजनेयाय, महाबलाय स्वाहा.(हवन के लिए प्रयोग करे )

ये है बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग:-

भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग-

आप अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।

हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी खुद की लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।

जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे।यदि आप परिवार के किसी और व्यक्ति के लिए कर रहे है तब संकल्प में उस व्यक्ति के नाम से संकल्प ले कि " में अमुक व्यक्ति के अमुक कार्य हेतु इस प्रयोग को कर रहा हूँ ."

अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।

गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।

बजरंग बाण ध्यान मन्त्र :-


श्रीराम

अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

दोहा


निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।

अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।

अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।

जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।

गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।

जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायं परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

दोहा

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

किसी भी प्रयोग में विश्वाश धेर्य निष्ठा संकल्प शक्ति की विशेष आवश्यकता होती है शंका करने वाले मनुष्य को सिर्फ शंका ही प्राप्त होती है जिनको शंका रहती हो उनके लिए व्यर्थ है कृपया अपने समय की बर्बादी न करे -यही उत्तम है - जिसने कर लिया वो कष्ट-मुक्त हो गया -

मृत्यु का भय.?

~~मृत्यु का भय.?

राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ। अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था। तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।
राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी। जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।
रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया। वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी । वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था। अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।
उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।
बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं। इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।। इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।
राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।
बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया।
राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।
वह बहेलिये से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा। राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा," परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था ? "
परीक्षित ने उत्तर दिया," भगवन् ! वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये ? वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है। "
श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा," हे राजा परीक्षित ! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है ?
राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
मेरे भाई - बहनों, वास्तव में यही सत्य है। जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् ! मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा। और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो ( उस राजा की तरह हैरान होकर ) सोचने लगता है कि मैं ये कहाँ आ गया ( और पैदा होते ही रोने लगता है ) फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता है। ये मेरी भी कथा है और आपकी भी