दान...
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एक नगर सेठ थे। उनकी रसोई से प्रतिदिन भूखों को भोजन कराया जाता था। सेठ धार्मिक व्यक्ति थे। सत्कार्यों का यश लेना चाहते थे लेकिन ज्यादा धन खर्च नहीं करना चाहते थे। भूखों को भोजन खिलाते थे लेकिन खराब अनाज़ का...।
नगरसेठ का अनाज का व्यापार था। जो अनाज खराब हो जाता था उसी अनाज की रोटी बना कर भूखों को दान में दी जाती थी।
इसी प्रकार दिन बीतते गये । घर में पुत्रवधू आई। अब रसोई संभालना पुत्रवधु का काम था। वह बहुत दानशील ,संस्कारी व धार्मिक युवती थी।
नगरसेठ खाना खाने बैठे, वधू ने भोजन परोसा । एक कौर मुंह में दिया ही था कि थू-थू कर के उठ गये , पूछा , “रसोई में इतना आटा है ,यह खराब आटे की रोटी क्यों बना दी.......??????”
” पिताजी यह वैसी रोटी है जो रोज़ दान में भूखों को दी जाती है..आपको भी यही खाने की आदत डाल लेनी चाहिये।
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सुना है परलोक में वही मिलता है जो भू लोक में दान करते हैं। ”
सेठ भी संवेदनशील थे। फ़ौरन खराब आटा फ़िकवा दिया गया और दान के लिये अच्छे अनाज का प्रबंध कर दिया गया।
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सीख ;
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” संसार में यश मिले” इस भावना से निरर्थक व अनुपयोगी वस्तुओं का दान न करें।
Friday, 11 December 2015
दान
Sunday, 6 December 2015
भगवान श्री राम कैसे इस लोक को छोड़कर वापस विष्णुलोक गए ?
भगवान श्री राम कैसे इस लोक को छोड़कर वापस विष्णुलोक गए ?
भगवान श्री राम के मृत्यु वरण में सबसे बड़ी बाधा उनके प्रिय भक्त हनुमान थे। क्योंकि हनुमान के होते हुए यम की इतनी हिम्मत नहीं थी की वो राम के पास पहुँच जाय। पर स्वयं श्री राम ने इसका हल निकाला।
आइये जानते है कैसे श्री राम ने इस समस्या का हल निकाला।
एक दिन, राम जान गए कि उनकी मृत्यु का समय हो गया था। वह जानते थे कि जो जन्म लेता है उसे मरना पड़ता है। “यम को मुझ तक आने दो। मेरे लिए वैकुंठ, मेरे स्वर्गिक धाम जाने का समय आ गया है”, उन्होंने कहा।
लेकिन मृत्यु के देवता यम अयोध्या में घुसने से डरते थे क्योंकि उनको राम के परम भक्त और उनके महल के मुख्य प्रहरी हनुमान से भय लगता था।
यम के प्रवेश के लिए हनुमान को हटाना जरुरी था। इसलिए राम ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श के एक छेद में से गिरा दिया और हनुमान से इसे खोजकर लाने के लिए कहा। हनुमान ने स्वंय का स्वरुप छोटा करते हुए बिलकुल भंवरे जैसा आकार बना लिया और केवल उस अंगूठी को ढूढंने के लिए छेद में प्रवेश कर गए, वह छेद केवल छेद नहीं था बल्कि एक सुरंग का रास्ता था जो सांपों के नगर नाग लोक तक जाता था।
हनुमान नागों के राजा वासुकी से मिले और अपने आने का कारण बताया।
वासुकी हनुमान को नाग लोक के मध्य में ले गए जहां अंगूठियों का पहाड़ जैसा ढेर लगा हुआ था! “यहां आपको राम की अंगूठी अवश्य ही मिल जाएगी” वासुकी ने कहा। हनुमान सोच में पड़ गए कि वो कैसे उसे ढूंढ पाएंगे क्योंकि ये तो भूसे में सुई ढूंढने जैसा था।
लेकिन सौभाग्य से, जो पहली अंगूठी उन्होंने उठाई वो राम की अंगूठी थी। आश्चर्यजनक रुप से, दूसरी भी अंगूठी जो उन्होंने उठाई वो भी राम की ही अंगूठी थी। वास्तव में वो सारी अंगूठी जो उस ढेर में थीं, सब एक ही जैसी थी। “इसका क्या मतलब है?” वह सोच में पड़ गए।
वासुकी मुस्कुराए और बाले, “जिस संसार में हम रहते है, वो सृष्टि व विनाश के चक्र से गुजरती है। इस संसार के प्रत्येक सृष्टि चक्र को एक कल्प कहा जाता है। हर कल्प के चार युग या चार भाग होते हैं। दूसरे भाग या त्रेता युग में, राम अयोध्या में जन्म लेते हैं। एक वानर इस अंगूठी का पीछा करता है और पृथ्वी पर राम मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
इसलिए यह सैकड़ो हजारों कल्पों से चली आ रही अंगूठियों का ढेर है। सभी अंगूठियां वास्तविक हैं। अंगूठियां गिरती रहीं और इनका ढेर बड़ा होता रहा। भविष्य के रामों की अंगूठियों के लिए भी यहां काफी जगह है”।
हनुमान जान गए कि उनका नाग लोक में प्रवेश और अंगूठियों के पर्वत से साक्षात, कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह राम का उनको समझाने का मार्ग था कि मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकेगा। राम मृत्यु को प्राप्त होंगे। संसार समाप्त होगा। लेकिन हमेशा की तरह, संसार पुनः बनता है और राम भी पुनः जन्म लेंगे।