Wednesday, 13 January 2016

भक्त का प्रेम

* विशुद्ध प्रेम *

इस कथा को एक बार जरुर पढें और यदि आवश्यक समझें तो आगे भी भेजें।

प्रभु श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ बहुत-सी लीलायें की हैं।

श्री कृष्ण गोपियों की मटकी फोड़ते और माखन चुराते और गोपियाँ श्री कृष्ण का उलाहना लेकर यशोदा मैया के पास जातीं, ऐसा बहुत बार हुआ।

एक बार की बात है कि यशोदा मैया प्रभु श्री कृष्ण के उलाहनों से तंग आ गयीं और छड़ी लेकर श्री कृष्ण की ओर दौड़ी।

जब प्रभु ने अपनी मैया को क्रोध में देखा तो वह अपना बचाव करने के लिए भागने लगे।

भागते-भागते श्री कृष्ण एक कुम्भार के पास पहुँचे।

कुम्भार तो अपने मिट्टी के घड़े बनाने में व्यस्त था, लेकिन जैसे ही कुम्भार ने श्री कृष्ण को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ।

कुम्भार जानता था कि श्री कृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं।

तब प्रभु ने कुम्भार से कहा कि:- 'कुम्भार जी, आज मेरी मैया मुझ पर बहुत क्रोधित है।
मैया छड़ी लेकर मेरे पीछे आ रही है, भैया, मुझे कहीं छुपा लो।'

तब कुम्भार ने श्री कृष्ण को एक बडे से मटके के नीचे छिपा दिया।

कुछ ही क्षणों में मैया यशोदा भी वहाँ आ गयीं और कुम्भार से पूछने लगी:- 'क्यूँ रे कुम्भार, तूने मेरे कन्हैया को कहीं देखा है क्या?'

कुम्भार ने कह दिया:- 'नहीं मैया, मैंने कन्हैया को नहीं देखा।'

श्री कृष्ण ये सब बातें बडे से घड़े के नीचे छुपकर सुन रहे थे।

मैया तो वहाँ से चली गयीं...

अब प्रभु श्री कृष्ण कुम्भार से कहते हैं:- 'कुम्भार जी, यदि मैया चली गयी हो तो मुझे इस घड़े से बाहर निकालो।'

कुम्भार बोला:- 'ऐसे नहीं प्रभु जी, पहले मुझे चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दो।'

भगवान मुस्कुराये और कहा:- 'ठीक है, मैं तुम्हें चौरासी लाख योनियों से मुक्त करने का वचन देता हूँ, अब तो मुझे बाहर निकाल दो।'

कुम्भार कहने लगा:- 'मुझे अकेले नहीं प्रभु जी, मेरे परिवार के सभी लोगों को भी चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दोगे तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालूँगा।'

प्रभु जी कहते हैं:- 'चलो ठीक है, उनको भी चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त होने का मैं वचन देता हूँ, अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो।'

अब कुम्भार कहता है:- 'बस प्रभु जी, एक विनती और है, उसे भी पूरा करने का वचन दे दो तो मैं आपको घड़े से बाहर निकाल दूँगा।'

भगवान बोले:- 'वो भी बता दे, क्या कहना चाहते हो?'

कुम्भार कहने लगा:- 'प्रभु जी, जिस घड़े के नीचे आप छुपे हो, उसकी मिट्टी मेरे बैलों के ऊपर लाद के लायी गयी है।
मेरे इन बैलों को भी चौरासी के बन्धन से मुक्त करने का वचन दो।'

भगवान ने कुम्भार के प्रेम पर प्रसन्न होकर उन बैलों को भी चौरासी के बन्धन से मुक्त होने का वचन दिया।'

प्रभु बोले:- 'अब तो तुम्हारी सब इच्छा पूरी हो गयी, अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो।'

तब कुम्भार कहता है:- 'अभी नहीं भगवन, बस एक अन्तिम इच्छा और है, उसे भी पूरा कर दीजिये, और वो ये है - जो भी प्राणी हम दोनों के बीच के इस संवाद को सुनेगा, उसे भी आप चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करोगे।

बस यह वचन दे दो तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकाल दूँगा।'

कुम्भार की प्रेम भरी बातों को सुन कर प्रभु श्रीकृष्ण बहुत खुश हुए और कुम्भार की इस इच्छा को भी पूरा करने का वचन दिया।

फिर कुम्भार ने बाल श्री कृष्ण को घड़े से बाहर निकाल दिया।

उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया, प्रभु जी के चरण धोये और चरणामृत पीया, अपनी पूरी झोंपड़ी में चरणामृत का छिड़काव किया और प्रभु जी के गले लगकर इतना रोये क़ि प्रभु में ही विलीन हो गये।

जरा सोच करके देखिये, जो बाल श्री कृष्ण सात कोस लम्बे-चौड़े गोवर्धन पर्वत को अपनी इक्क्नी अंगुली पर उठा सकते हैं, तो क्या वो एक घड़ा नहीं उठा सकते थे।

लेकिन बिना प्रेम रीझे नहीं नटवर नन्द किशोर.....

कोई कितने भी यज्ञ करे, अनुष्ठान करे, कितना भी दान करे, चाहे कितनी भी भक्ति करे, लेकिन जब तक मन में प्राणी मात्र के लिए प्रेम नहीं होगा, प्रभु श्री कृष्ण मिल नहीं सकते।

'हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रकट होई मैं जाना'

'मोहन प्रेम बिना नहीं मिलता, चाहे कोई कर ल्यो कोटि उपाय।'

करोड़ों उपाय भी चाहे कोई कर लो तो प्रभु को प्रेम के बिना कोई पा नहीं सकता।

'प्रेम परिचय को पहचान बना देता है, प्रेम वीराने को गुलिस्तान बना देता है।

मैं आप बीती कहती हूँ - गैरों की नहीं, प्रेम इन्सान को भगवान बना देता है॥'

जय श्री कृष्ण जी.......l

Tuesday, 12 January 2016

कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं

कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते है

आप.आप किसी को कहिये कि भाई भक्ति कीजिये.प्रभु की भक्ति करने के लिए ही तो मनुष्य जीवन मिला है.तो आप जानते हैं कि लोग क्या कहते हैं.कह देते हैं की अरे भाई अभी तो बहुत काम है,बच्चों को पालना है,पोसना है,नौकरी करनी है.इतने busy हैं हम.time कहाँ है जो भक्ति करे.कुछ तो ये भी कह देते हैं कि भक्ति करना तो बेकार लोगों का काम है.हमारे पास तो बहुत काम है.कुछ लोग कहते हैं कि जब free हो जायेंगे तब भगवान के बारे में सोचेंगे.अभी तो बहुत व्यस्त हैं.

भगवान जानते हैं कि इंसान उन तक न आने के लिए बहुत बहाने बनाता है.इसीलिए तो भगवान कहते हैं :

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ ॥(भगवद्गीता,8.7)

अर्थात्

हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो भगवान देखिये यहाँ कितना सुन्दर तरीका आपको बता रहे हैं.कैसे आप भक्ति में रहे.कैसे आप भगवान का ध्यान करे.कईबार लोग मुझसे पूछते हैं कि हम कभी मंदिर नही जाते,हम पूजा-पाठ नही करते तो इसका मतलब क्या हम पापी हैं?भगवान ने देखिये यहाँ नही कहा है कि आप मेरे दरवाजे पर आईये,मेरे दर पर आईये.भगवान ने कहा है कि जहाँ भी आप हैं,जो कुछ कर रहे हैं करते रहिये.किसी चीज को छोडने की जरूरत नही है.कुछ मत छोडिये लेकिन मेरा चिंतन अवश्य कीजिये.कैसे ,सर्वेषु कालेषु,हर वक्त,हर समय,हर पल,हर क्षण मेरा स्मरण करते रहिये.

तो भगवान ने बहुत सुन्दर नुस्खा बताया है कि कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं,भगवान को याद करके.है न.भगवान को याद करना बहुत सहज है.बहुत ही सहज है.लेकिन इसके लिए हमें ये याद रखना होगा कि भगवान से हमारा संबंध क्या है?अगर आपको कोई संबंध नजर नही आता तो आप कोई संबंध बना लीजिए.कोई संबंध जोड़ लीजिए.फिर उस संबंध को पोषित कीजिये.धीरे-धीरे,धीरे-धीरे आप उस संबंध के आदी हो जायेंगे और जब वो संबंध आप भगवान से अच्छी तरह से जोड़ लेंगे तब आपको आदत हो जायेगी भगवान के बारे में सोचने की.यही तरीका है जिससे आप हर समय,हर क्षण भक्ति कर सकते हैं और आपका समय भी जाया नही होगा.

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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो देखिये यहाँ अर्जुन को कहा गया है कि तुम्हे मेरा चिंतन करना चाहिए और युद्ध भी करना चाहिए.दोनों चीजें करनी चाहिए.कभी आपने सुना है कि दो चीजें,दो काम एक साथ हो.थोडा मुश्किल है न.दो काम एक साथ कैसे हो सकता है.लेकिन भगवान कहते हैं कि मन से मेरे बारे में सोचो और तन से अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करो.अर्जुन योद्धा थे तो ये अर्जुन का कर्त्तव्य था कि वे युद्ध करे.तो भगवान ने कहा कि देखिये जब आप इतने हिंसक कार्य को कर रहे हैं तो बेशक ये हिंसक कार्य पाप है.लेकिन याद रखना कि ये मेरी आज्ञा से आप कर रहे हैं.मैंने आपको आज्ञा दी है कि आप जो अन्यायी लोग हैं उनका वध करे.

जैसे कि अगर सरकार किसी सैनिक को यह आज्ञा देती है कि वह front पर जाकर लड़ाई करे और वे जब अधिकाधिक शत्रुओं का वध करते हैं तो फिर सरकार उन्हें मेडल देती है.यह पाप नही है.इसीप्रकार जब भगवान की आज्ञा है की आप जाकर के आतातायी लोगों का वध करे.अधर्म का नाश करे और धर्म की स्थापना कीजिये तब ये पाप नही है.और वो भी किसतरह से कीजिये.मेरे लिए कीजिये.मुझे याद करते हुए कीजिये.

तो देखिये याद करने का काम आँखों का नही.याद करने का काम नाक का नही है.याद करने का काम कान का नही है.याद करने का काम सिर्फ और सिर्फ मन का है.शुद्ध मन का है.

तो मन युद्ध नही कर रहा.तन युद्ध कर रहा है.मन खाना नही बना रहा तन खाना बना रहा है.मन पढाई नही कर रहा तन पढाई कर रहा है.है न.तो भगवान ने यहाँ तरीका बताया है कि भाई जो कुछ कर्त्तव्य आपका है उस कर्त्तव्य को आप पूरा करिये.काम करने के लिए भगवान मना नही करते.अर्जुन ने एकबार कहा कि मै जाकर के संन्यास ले लेता हूँ.किसी गुफा में बैठकर के भगवान का नाम लूँगा.ये हिंसा मुझे नही करनी है.तो भगवान ने कहा कि नही,ये तो आपका कर्त्तव्य है क्योंकि आप योद्धा है,क्षत्रिय हैं.

तो इसीप्रकार से अगर एक student कहे ,एक विद्यार्थी कहे कि नही मुझे तो भगवान का नाम लेना है ,मुझे पढ़ाई नही करनी.तो आप इस श्लोक से सीख सकते हैं.भगवान कहते हैं कि नही,पढाई करनी है.अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करना हैऔर उस पढाई को भी मुझे समर्पित कर दो.और जब तुम ऐसा करोगे तो उस कार्य से बंधोगे नही.पहली बात.और दूसरी बात कि तुम मेरा चिंतन करो.मेरे बारे में सोचो,मेरे ख्यालों में डूबो.तुम ऐसा करोगे तो तुम सारे कामों को करते हुए भी मुक्त रहोगे और मुझे प्राप्त कर पाओगे.
श्रोत व्हाट्सअप ग्रुप भक्तिसागर

Monday, 11 January 2016

.ईश्वर पर भरोसा रखो, शांति का

ईश्वर पर भरोसा रखो, शांति का यही एकमात्र रास्ता है।एक व्यापारी था, उसने व्यापार में खूब कमाई की।बड़े-बड़े मकान बनाए, नौकर-चाकर रखे, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उसके दिन फिर गए।व्यापार में घाटा आया और वह एक-एक पैसे के लिए मोहताज हो गया।जब उसकी परेशानी सहन से बाहर हो गई, तब वह एक साधु बाबा के पास गया और रोते हुए बोला:- "महाराज, मुझे कोई रास्ता बताइए, जिससे मुझे शांति मिले।"साधु बाबा ने पूछा:- "तुम्हारा सब कुछ चला गया?"व्यापारी ने कहा - "जी हां"साधु बाबा बोले - "तुम्हारा था तो उसे तुम्हारे पास रहना चाहिए था, वहचला कैसे गया?"साधु बाबा की बात सुनकर व्यापारी चुप हो गया।साधु बाबा ने फिर पूछा:- "जन्म के समय तुम अपने साथ कितना धन लाए थे?"व्यापारी ने कहा:- "स्वामीजी, जन्म के समय तो सब खाली हाथ आते हैं।"साधु बाबा बोले:- "ठीक है, अब यह बताओकि मरते समय अपने साथ कितना ले जानाचाहते हो?"व्यापारी बोला:- "मरते समय साथ कौन ले जाता है, जो मैं ले जाऊंगा।"साधु बाबा ने फिर कहा:- "जब तुम खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाओगे तो फिर चिंता किस बात की करते हो?"व्यापारी ने कहा:- "महाराज, जब तक मौत नहीं आती, तब तक मेरी और मेरे घरवालों की गुजर-बसर कैसे होगी?"साधु बाबा हंस पड़े और बोले:- "जो धन के भरोसे रहेगा, उसका यही हाल होगा।तुम्हारे हाथ-पैर तो हैं, उन्हें काम में लाओ, पुरुषार्थ सबसे बड़ा धन है, और ईश्वर पर भरोसा रखो, शांतिका यही एकमात्र रास्ता है।"साधु बाबा की बातें सुनकर व्यापारी की आंखें खुल गईं, उसका मनशांत हो गया।जाने कितने वर्षों के बाद पहली बार रात को उसे चैन की नींद आई और उसके शेष वर्ष बड़े आनंद में बीते...