Saturday, 10 October 2015

सफलता के लिए जानिए श्रीकृष्ण के ये 11 सूत्र

भगवान कृष्ण ने गीता के माध्यम से संसार को जो शिक्षा दी, वह अनुपम है। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार है ब्रह्मसूत्र और ब्रह्मसूत्र का सार है गीता। सार का अर्थ है निचोड़ या रस।

गीता में उन सभी मार्गों की चर्चा की गई है जिन पर चलकर मोक्ष, बुद्धत्व, कैवल्य या समाधि प्राप्त की जा सकती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जन्म-मरण से छुटकारा पाया जा सकता है। तीसरे शब्दों में कहें तो खुद के स्वरूप को पहचाना जा सकता है। चौथे शब्दों में कहें तो आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और पांचवें शब्दों में कहें तो ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

आओ जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण के वे रहस्यमय सूत्र जिन्हें जानकर आपको लगेगा कि सच में यह बिलकुल ही सच है। निश्‍चित ही उनके ये सूत्र आपके जीवन में बहुत काम आएंगे। जीवन में सफलता चाहते हैं ‍तो गीता के ज्ञान को अपनाएं और निश्‍चिंत तथा भयमुक्त जीवन पाएं।
1 सफलता : भगवान श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि यदि आप लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल रहते हैं, तो अपनी रणनीति बदलें, लक्ष्य नहीं। ...इस जीवन में न कुछ खोता है, न व्यर्थ होता है। ...जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं, वे देवताओं की प्रार्थना करें।
2 प्रसन्नता : श्रीकृष्ण कहते हैं कि खुशी मन की एक अवस्था है, जो बाहरी दुनिया से नहीं मिल सकती है। खुश रहने की एक ही कुंजी है इच्छाओं में कमी।
3 आत्मविनाश या नर्क के ये 3 द्वार हैं- वासना, क्रोध और लोभ। क्रोध से भ्रम पैदा होता है। भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है, तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है, तब व्यक्ति का पतन हो जाता है। ...वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और 'मैं' और 'मेरा' की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है, उसे शांति प्राप्त होती है
4 विश्वास क्या है? : मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वो विश्वास करता है, वैसा वो बन जाता है। ...व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे। ...हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है। विश्‍वास की शक्ति को पहचानें

5 मित्र और शत्रु दोनों है मन : जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है। मन की गतिविधियों, होश, श्वास और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है और लगातार तुम्हें बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।

मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है। ...सर्वोच्च शांति पाने के लिए हमें हमारे कर्मों के सभी परिणाम और लगाव को छोड़ देना चाहिए। ...केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है।

6 निर्भीक बनो : उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, न कभी था न कभी होगा। जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता। ...प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर और सोना सभी समान हैं।

7 संशय न करो : सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न इस लोक में है, न ही कहीं और। आत्मज्ञान की तलवार से काटकर अपने हृदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो। अनुशासित रहो। उठो।

संदेह, संशय, दुविधा या द्वंद्व में जीने वाले लोग न तो इस लोक में सुख पाते हैं और न ही परलोक में। उनका जीवन निर्णयहीन, दिशाहीन और भटकाव से भरा रहता है।

8 आत्मा न जन्म लेती है और न ही मरती है : जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितन‍ी कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है, उस पर शोक मत करो।

न कोई मरता है और न ही कोई मारता है, सभी निमित्त मात्र हैं...। सभी प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर के थे, मरने के उपरांत वे बिना शरीर वाले हो जाएंगे। यह तो बीच में ही शरीर वाले देखे जाते हैं, फिर इनका शोक क्यों करते हो?

यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मती है और न मरती है अथवा न यह आत्मा हो करके फिर होने वाली है, क्योंकि यह अजन्मी, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नाश होने पर भी यह नष्ट नहीं होती है।

कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे, न ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाए। ...हे अर्जुन! हम दोनों ने कई जन्म लिए हैं। मुझे याद हैं, लेकिन तुम्हें नहीं।

9 कर्मवान बनो : निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता, क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है। ...अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।

ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दिमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए। ...अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है। ...किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े। ...बुद्धिमान व्यक्ति कामुक सुख में आनंद नहीं लेता। ...कर्मयोग वास्तव में एक परम रहस्य है।

10 जो मेरे साथ हैं मैं उनके साथ हूं : संपूर्ण ब्रह्मांड मेरे ही अंदर है। मेरी इच्छा से ही यह फिर से प्रकट होता है और अंत में मेरी इच्छा से ही इसका अंत हो जाता है। ...मेरे लिए न कोई घृणित है न प्रिय, किंतु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं, वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूं। ...बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवृत्तियों से जुड़े हुए हैं और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते।
हे अर्जुन! कल्पों के अंत में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूं।
मैं उन्हें ज्ञान देता हूं, जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं।
मैं सभी प्राणियों को समान रूप से देखता हूं, न कोई मुझे कम प्रिय है न अधिक। लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूं।

मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है। ...हे अर्जुन! केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते हैं, जो स्वर्ग के द्वार के समान है।

11 ईश्‍वर के बारे में : भगवान प्रत्येक वस्तु में है और सबके ऊपर भी। ...प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता। ...सभी काम छोड़कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। शोक मत करो।

जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ़ कर देता हूं। ...हे अर्जुन! मैं भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूं, किंतु वास्तविकता में कोई मुझे नहीं जानता।

ईश्वर एक अदृश्य एवं अकथनीय शक्ति है जिससे संसार की उत्पत्ति, पालन एवं लय होता है। मानवीय रूप में उसकी ऐसी कल्पना की जा सकती है कि उसके सभी ओर से ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियां हैं।

'सर्वत: पणिपादं तर्त्सतोsक्षिशिरोमुखम।'

वह समय-समय पर संसार में धर्म की पुनर्स्थापना के लिए सगुण रूप में अवतरित होता है।

वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है। इसमें कोई संशय नहीं है। ...वे जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किए बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते रहते हैं।
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शुभ मुहूर्त में कैसे करें दुर्गोत्सव घटस्थापना

दुर्गा की आराधना के पर्व नवरात्रि के पहले दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घटस्थापना की जाती है। इसके बाद ही नवरात्रि उत्सव का प्रारंभ होता है। माता दुर्गा व घटस्थापना शुभ मुहूर्त के समय की विधि का वर्णन इस प्रकार है-

 

पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर जौ और गेहूं बोएं, फिर वहां अपनी शक्ति के अनुसार बनवाए गए सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक पूजा करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति की प्रतिष्ठा करें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिन्दूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वस्तिक और उसके दोनों कोनों में दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। पूजन सात्विक हो, राजस या तामसिक नहीं, इस बात का विशेष ध्यान रखें।

 

नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांति पाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। दुर्गा देवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ 9 दिनों तक करना चाहिए। इच्छानुसार फल प्राप्ति के लिए विशेष मंत्र से अनुष्ठान करना या योग्य वैदिक पंडित से विशेष मंत्र से अनुष्ठान करवाना चाहिए। 

Wednesday, 7 October 2015

रामायण की कुछ रोचक बाते

रामायण की वो रोचक बातें

उज्जैन। धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रेता युग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया था। इसलिए हिंदू धर्मावलंबी इस दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव श्रीराम नवमी के रूप में मनाते हैं। इस बार श्रीराम नवमी का पर्व कल यानी 8 अप्रैल, मंगलवार को है। इस दिन प्रमुख राम मंदिरों में विशेष साज-सज्जा की जाती है व धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान श्रीराम का जीवन हमारे लिए आदर्श है।

भगवान श्रीराम व उनके छोटे भाई लक्ष्मण, पत्नी सीता और राक्षसराज रावण के जीवन का वर्णन यूं तो कई ग्रंथों में मिलता है, लेकिन इन सभी में वाल्मीकि रामायण में लिखे गए तथ्यों को ही सबसे सटीक माना गया है। वाल्मीकि रामायण में कुछ ऐसी रोचक बातें बताई गई हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम हमको कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जो शायद अब तक आप नहीं जानते थे। जानिए कौन सी हैं वो बातें-      1- रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं। जिस समय राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था, उस समय उनकी आयु लगभग 60 हजार वर्ष थी।

2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

3- जब लक्ष्मण को श्रीराम को वनवास दिए जाने का समाचार मिला तो वे बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पिता दशरथ से ही युद्ध करने की ठान ली, तब श्रीराम द्वारा समझाने पर ही वह शांत हो पाए।        

4- वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे।

भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र तथा मीन लग्न में हुआ था, जबकि लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र व कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य अपने उच्च स्थान में विराजमान थे।

5- गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।

रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे तो विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।

6- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर में जब श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ दिया, तो क्रोधित होकर भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।

7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।

8- राजा दशरथ ने जब श्रीराम को वनवास जाने को कहा तब उन्होंने धन-दौलत, ऐश्वर्य का सामान, रथ आदि भी श्रीराम को देना चाहा ताकि उन्हें वनवास में किसी प्रकार की तकलीफ न हो, लेकिन कैकयी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

9- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण(यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।

10- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।

11- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।

12- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।

13- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया था। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।

14-  श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने जब लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।

15- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल नामक वानर ने किया था क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फैंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र था और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उन्होंने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।
16- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)

17- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

18- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया, तब माता पार्वती भयभीत हो गई थीं और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।

19- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।
20- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा, तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्यह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

21- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था, वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण विश्व विजय पर निकला, तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।
22- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा, लेकिन ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।

23- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।
24- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था।

वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।
25- रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा।

उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया।

रामायण की वो रोचक बातें

रामायण की वो रोचक बातें

उज्जैन। धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रेता युग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया था। इसलिए हिंदू धर्मावलंबी इस दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव श्रीराम नवमी के रूप में मनाते हैं। इस बार श्रीराम नवमी का पर्व कल यानी 8 अप्रैल, मंगलवार को है। इस दिन प्रमुख राम मंदिरों में विशेष साज-सज्जा की जाती है व धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान श्रीराम का जीवन हमारे लिए आदर्श है।

भगवान श्रीराम व उनके छोटे भाई लक्ष्मण, पत्नी सीता और राक्षसराज रावण के जीवन का वर्णन यूं तो कई ग्रंथों में मिलता है, लेकिन इन सभी में वाल्मीकि रामायण में लिखे गए तथ्यों को ही सबसे सटीक माना गया है। वाल्मीकि रामायण में कुछ ऐसी रोचक बातें बताई गई हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम हमको कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जो शायद अब तक आप नहीं जानते थे। जानिए कौन सी हैं वो बातें-      1- रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं। जिस समय राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था, उस समय उनकी आयु लगभग 60 हजार वर्ष थी।

2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

3- जब लक्ष्मण को श्रीराम को वनवास दिए जाने का समाचार मिला तो वे बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पिता दशरथ से ही युद्ध करने की ठान ली, तब श्रीराम द्वारा समझाने पर ही वह शांत हो पाए।        

4- वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे।

भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र तथा मीन लग्न में हुआ था, जबकि लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र व कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य अपने उच्च स्थान में विराजमान थे।

5- गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।

रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे तो विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।

6- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर में जब श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ दिया, तो क्रोधित होकर भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।

7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।

8- राजा दशरथ ने जब श्रीराम को वनवास जाने को कहा तब उन्होंने धन-दौलत, ऐश्वर्य का सामान, रथ आदि भी श्रीराम को देना चाहा ताकि उन्हें वनवास में किसी प्रकार की तकलीफ न हो, लेकिन कैकयी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

9- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण(यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।

10- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।

11- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।

12- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।

13- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया था। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।

14-  श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने जब लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।

15- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल नामक वानर ने किया था क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फैंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र था और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उन्होंने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।
16- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)

17- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

18- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया, तब माता पार्वती भयभीत हो गई थीं और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।

19- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।
20- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा, तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्यह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

21- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था, वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण विश्व विजय पर निकला, तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।
22- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा, लेकिन ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।

23- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।
24- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था।

वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।
25- रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा।

उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया।