Tuesday, 14 June 2016

कुछ हिन्दू देवियों का रूप विकराल क्यों है?

कुछ हिन्दू देवियों का रूप विकराल क्यों है?
परमात्मा शक्तियों का संतुलन किस प्रकार करते हैं इसका आभास हर बार होता है जब दसमहाविद्या देवियों की छवि का ध्यान करता हूं. माता सती और पार्वती दोनों एक ही हैं. दोनों सर्वांगसुंदरी, अलौकिक ऐश्वर्य. उन्ही एक स्वरूप हैं माता धूमावती. श्वेत वस्त्र, खुले केश, शरीर पर एक भी आभूषण नहीं, कौए के वाहन पर सवार विधवा वेशवाली, सब प्रकार से असौम्य वेश में. दशमहाविद्याओं में माता धूमावती" परम प्रेम की विरह वेदना,त्याग और ममता से भरी भूखी माँ है.

भूख से विकल होकर पार्वतीजी ने शिवजी को ही निगल लिया. विधर्मी तर्क देते हैं- वाह जी गजब! पत्नी ने पति को खा लिया?! मूर्खों को कौन समझाए कि पत्नी ने पति में सारा संसार व्याप्त देखा. जो भी सामग्री उनकी भूख मिटाएगी वह शिव का ही अंश है. भाव को समझो, देखो. हनुमानजी ने सूर्य को निगल लिया था तो क्या इसका अर्थ है कि उनका पेट ऐसा बड़ा था कि सूर्य के बराबर भोजन से पेट भरता था. फिर तो पृथ्वी को ही खा गए होते!

पार्वतीजी ने शिवजी को निगला तो शिवजी के कंठ में रखे हलाहल के प्रभाव उनके शरीर से धूम्रराशि निकलने लगी. शिवजी अपनी शक्ति के बल से पार्वतीजी के शरीर से बाहर आ गए. पार्वतीजी को बड़ा पछतावा होने लगा.

शिवजी बोले- देवी सृष्टि संचालन के लिए व पापियों को दण्डित करने के लिए एक रहस्य स्वरूप की आवश्यकता थी जिसके लिए मैंने यह युक्ति लगाई. आपके द्वारा ऐसी शक्ति उत्पन्न की.

पार्वतीजी ने पूछा- स्वामी पर इस कार्य के लिए मुझे क्यों चुना, मैंने तो अपने स्वामी को निगल जाने का घोर पाप कर डाला. सर्वथा रीतिविरूद्ध है यह.

शिवजी बोले- हे शिवे! इस महाकार्य का सामर्थ्य तीनों लोकों में आपके अतिरिक्त कोई और नहीं रखता. प्रकृति शक्ति को प्रकृति शक्ति ही संतुलित कर सकती है. आपको प्रकट करने के लिए भूख की लीला की गई इसलिए भूखी और असौम्य रूप में वह महाकार्य करो जिसके लिए उत्पन्न किया.

किस चीज की भूख है धूमावती को? जीव को शिवतत्व का ज्ञान प्राप्त कराकर शिव में मिला देना और सबकुछ प्रदान कर देना यही इनकी ममतामयी भूख है. मोह का जो नाश कर दे वही धूमावती हैं. हमारे जीवन में भांति भांति के मोह हैं.

जगदंबा का ही स्वरूप माया है. माया जो मोहती है. माया मातास्वरूप में हैं. भक्त पुत्र की तरह जो भी हठ कर लें सब प्रदान कर देती हैं. भक्त ने ममता का अनुचित लाभ लेना भी शुरू किया. अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए माता की शक्तियों का गलत मंशा से प्रयोग. यहीं से भक्त के मन में बैठी आसुरी प्रवृति प्रचंड होनी आरंभ होती है. 

कई बार हम जब अनुचित हठ कर लेते थे तो माता तरह-तरह के भय भी दिखाती थीं, कुछ दंड भी देती थीं. किसलिए? हमारे उपकार के लिए. दसमहाविद्या देवियों में से कई के स्वरूप के असौम्य होने का संभव है यही कारण हो.

बच्चे को भय भी दिखा जाए ताकि उसके अंदर की आसुरी शक्ति प्रबल न हो. जब मां बच्चे को दंडित करती है तो बाहर से जितनी अप्रिय होती है वास्तव में अंदर से उस समय उसकी ममता सबसे ज्यादा छलक रही होती है. उसे संतुलित करने के लिए चेहरे पर क्रोध के भाव लाने होते हैं.

दसमहाविद्याओं में जो भी देवियां जिनका रूप असौम्य है वे सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाली और भक्तों के शत्रुओं का सबसे तेजी से संहार करने वाली हैं. माता तो जिस रूप में हो कुमाता नहीं होती, पुत्र कुपुत्र हो जाते हैं. कुपुत्रों को राह पर लाकर यथेष्ठ प्रदान करने वाली माता के इस असौम्य ममतामयी स्वरूप का ध्यान करता हूं, वंदन करता हूं l

No comments:

Post a Comment