Friday, 11 December 2015

दान

दान...
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एक नगर सेठ थे। उनकी रसोई से प्रतिदिन भूखों को भोजन कराया जाता था। सेठ धार्मिक व्यक्ति थे। सत्कार्यों का यश लेना चाहते थे लेकिन ज्यादा धन खर्च नहीं करना चाहते थे। भूखों को भोजन खिलाते थे लेकिन खराब अनाज़ का...।
नगरसेठ का अनाज का व्यापार था। जो अनाज खराब हो जाता था उसी अनाज की रोटी बना कर भूखों को दान में दी जाती थी।
इसी प्रकार दिन बीतते गये । घर में पुत्रवधू आई। अब रसोई संभालना पुत्रवधु का काम था। वह बहुत दानशील ,संस्कारी व धार्मिक युवती थी।
नगरसेठ खाना खाने बैठे, वधू ने भोजन परोसा । एक कौर मुंह में दिया ही था कि थू-थू कर के उठ गये , पूछा , “रसोई में इतना आटा है ,यह खराब आटे की रोटी क्यों बना दी.......??????”
” पिताजी यह वैसी रोटी है जो रोज़ दान में भूखों को दी जाती है..आपको भी यही खाने की आदत डाल लेनी चाहिये।
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सुना है परलोक में वही मिलता है जो भू लोक में दान करते हैं। ”
सेठ भी संवेदनशील थे। फ़ौरन खराब आटा फ़िकवा दिया गया और दान के लिये अच्छे अनाज का प्रबंध कर दिया गया।
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सीख ;
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” संसार में यश मिले” इस भावना से निरर्थक व अनुपयोगी वस्तुओं का दान न करें।

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