भक्ति की शक्ति ने लिया अद्भुत रूप तिनका बना साक्षात शिवलिंग स्वरूप
पाण्डवों को दुर्योंधन ने कपट से जुए में हरा दिया इसलिए पाण्डव 12 महीने का वनवास भोग रहे थे। पांचों भाई धर्म पर चलते थे। जंगल में भी उन्हें मंगल सा अनुभव हो रहा था। सभी भाई साथ मिलकर भोजन करते थे। यह उनका नियम था। अर्जुन प्रतिदिन स्नान करके भगवान शिव की पूजा करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करता था।
एक दिन पांचों भाई घूमते हुए बड़े घने जंगल में निकल गए। भीम को भूख लग गई। जंगल में ही कंदमूल इकट्ठे करने का निर्णय किया गया। भोजन एकत्रित करने के पश्चात भीम को चिंता होने लगी आस-पास कोई शिव मंदिर तो है ही नहीं और अर्जुन शिव पूजन किए बिना भोजन नहीं करेगा। अर्जुन भोजन नहीं करेगा तो कोई भी नहीं करेगा। युधिष्ठिर से आज्ञा लेकर भीम शिव मंदिर की खोज में निकल गए।
जब बहुत खोज करने पर भी कोई शिव मंदिर न मिला। तो वो थक हार कर वापिस आने लगे तो उन्हें शिवलिंग के आकार का एक लकड़ी का टुकड़ा दिखाई दिया। भीमसेन ने अच्छा सा स्थान देखकर उसे जमीन में गाढ़ दिया और उस पर कुछ पुष्प चढा दिए। यह सब करके वे अर्जुन के पास आए और कहा, “शिवलिंग मिल गया है चलकर उसका पूजन कर लो।”
अर्जुन के द्वारा पूजन करने के उपरांत सभी भाईयों ने भोजन किया। भोजन के पश्चात भीम ने हंसते- हंसते बताया कि,” किस प्रकार एक लकड़ी के टुकड़े को जमीन में गाढ़कर उन्होंने उसे शिव प्रतिमा का रूप दिया।”
अर्जुन कहने लगे,” वह तो शिवलिंग ही थे।”
युधिष्ठिर बोले,” उस स्थान पर चलकर ही सही बात का पता लगाया जाए।”
सभी भाई उस स्थान पर पंहुचे जहां कृत्रिम शिवलिंग था। युधिष्ठिर भीम से बोले,” यदि यह पेड़ का तना है तो इसे उखाड़ कर दिखाओ।”
भीम ने एक हाथ से उस लकड़ी के टुकड़े को हिलाया परंतु टुकड़ा नहीं हिला। भीम अपने शरीर का संपूर्ण बल लगाकर भी लकड़ी के टुकड़े को नहीं हिला सका।
युधिष्ठिर बोले,” भीम तुम्हारी बात निश्चय ही सही होगी परंतु अर्जुन एक निष्ठावान साधक है। उसी निष्ठा के बल पर ही लकड़ी का टुकड़ा साक्षात शिवलिंग बन गया।”
सारांश यह है कि जो व्यक्ति जिसको जैसा समझता है। उसके सामने वह वैसा ही उपस्थित होता है। सच्ची निष्ठा श्रद्धा का ही फल है।
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