Sunday, 27 September 2015

क्यों कम उम्र में ही कुछ लोग छोड़ देते हैं दुनिया?

विदुर नीति में है इसका उत्तर-

वेदों में वर्णित है कि मनुष्य की आयु 100 वर्षों की है, फिर भी कई लोग इस आयु सीमा के इर्द-गिर्द भी नहीं पहुँच पाते. महाभारत में इस रहस्य को जानने की उत्सुकता धृतराष्ट्र को हुई।
उन्होंने अपने मन की बात विदुर को बतायी अपनी उत्सुकता जाहिर करते हुए धृतराष्ट्र ने पूछा-

शतायुरुक्त: पुरुष: सर्ववेदेषु वै यदा।
नाप्नोत्यथ च तत् सर्वमायु: केनेह हेतुना।।

अर्थात-

जब सभी वेदों में पुरुष को 100 वर्ष की आयु वाला बताया गया है तो किस कारण से कोई अपनी पूर्ण आयु नहीं जी पाता?

धृतराष्ट्र के जवाब में विदुर कहते हैं-

अतिमानोअतिवादश्च तथात्यागो नराधिप।
क्रोधश्चात्मविधित्सा च मित्रद्रोहश्च तानि षट्।।
एत एवासयस्तीक्ष्णा: कृन्तन्यायूंषि देहिनाम्।
एतानि मानवान् घ्नन्ति न मृत्युर्भद्रमस्तु ते।।

अर्थात:-

अत्यधिक अभिमान, अत्यधिक बोलना, त्याग की कमी, क्रोध, स्वार्थ, मित्र द्रोह ये छ: चीजें किसी मनुष्य की आयु को कम करती हैं.

महाभारत काल में इस तरह विदुर ने मनुष्यों के छह दोषों को उनके आयुु के कम होने का कारण माना. ये कारण निम्नवत हैं-

अभिमान:-
अपनी प्रशंसा सुनने वाले, सबसे बलवान समझने का वहम रखने वाले अभिमान का शिकार हो जाते हैं. किसी व्यक्ति में इन दोषों के आ जाने के कारण वह स्वयं को सर्वोपरि मानने लगता है। यह अभिमान ही उसकी अल्पावधि में मृत्यु का कारण बनती हैं.

वाचाल:-
अत्यधिक और व्यर्थ बोलने वाले ऐसी बातें बोल जाते हैं जिसके नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं. दूसरे बुद्धिमान प्राणियों पर उनका कोई प्रमाण नहीं होता. असंयमित वाणी का नकारात्मक असर मनुष्य के जीवन पर पड़ता है ।
क्रोध:-
क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है. इस अवस्था में वह भावी परिणामों को भूल जाता है जो यदा-कदा उसके पतन का कारण बनते हैं।

त्याग की कमी:-
त्याग की कमी मनुष्यों की आयु को कम करती है. सामाजिक मनुष्य होने के नाते भी मनुष्य के अंदर त्याग रूपी गुण का समावेश होना चाहिये।

स्वार्थ :-
पाप के मूल में स्वार्थ लोलुप प्रवृत्तियाँ हैं. ये कुत्सित प्रवृतियाँ अनीति को बढ़ावा देकर सामाजिक असमानता को चौड़ा करने का कार्य करती हैं। इस पर यथाशीघ्र नियंत्रण जीवन को संयमित करता है।

मित्र को धोखा :-
शास्त्रों के अनुसार मित्रों को धोखा देने वालों को अधम मनुष्यों की श्रेणी में रखा गया है। मित्रों से छल करने वालों का पतन निश्चित माना गया है। इस अवगुण से बचकर ही उल्लासपूर्ण जीवन की कल्पना की जा सकती है।

विदुर के इस उत्तर को सुन धृतराष्ट्र की सारी जिज्ञासा शांत हो गयी। आज के जीवन में भी विदुर की कही ये बातें प्रासंगिक है ।

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