गणपति बप्पा से जुड़े मोरया नाम के पीछे गणपति जी का मयूरेश्वर स्वरुप माना जाता है।
गणेश-पुराण के अनुसार सिंधु नामक दानव के अत्याचार से बचने हेतु देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया। सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर को अपना वाहन चुना और छह भुजाओं वाला अवतार लिया।
इस अवतार की पूजा भक्त गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के साथ करते हैं।
क्यों किया जाता है गणपति विसर्जन?
गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ इस नारे के साथ देश में जगह-जगह गणपति की मूर्ति विसर्जित की जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अगले 10 दिन तक गणपति को वेद व्यास जी ने भागवत कथा सुनाई थी।
इस कथा को गणपति जी ने अपने दांत से लिखा था। दस दिन तक लगातार कथा सुनाने के बाद वेद व्यास जी ने जब आंखें खोली तो पाया कि लगातार लिखते-लिखते गणेश जी का तापमान बढ़ गया है।
वेद व्यास जी ने फौरन गणेश जी को पास के कुंड में ले जाकर ठंडा किया। इसीलिए भाद्र शुक्ल चतुर्थी को गणेश स्थापना की जाती है। और भाद्र शुक्ल चतुर्दशी यानी अनंत चतुर्दशी को शीतल जल में विसर्जन किया जाता है।
कैसे होता है गणपति विसर्जन?
भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति माने जाते हैं। इसी कारण अनंत चतुर्दशी को गणपति पूजा के बाद ही मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक मिटटी की बनी गणेश जी की मूर्तियां का जल में विसर्जन अनिवार्य है। इसके लिए घर में ही पवित्र पात्र में गंगाजल की बूंदें और शुद्ध जल मिलाकर मूर्ति का विसर्जन किया जा सकता है। हालांकि बड़ी मूर्तियों को समुद्र और नदी में विसर्जित करने की परंपरा रही है
गणपति की पूजा की विधि क्या है?
शास्त्रों के अनुसार गणपति विसर्जन से पहले गणपति की विधिवत पूजा की जानी चाहिए। विसर्जन से पूर्व स्थापित गणपतिजी की मूर्ति का विधिवत षोड़शोपचार पूजन और आरती की जाती है।
पूजा विधि के अनुसार पूजा की शुरुआत गणपतिजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाने के साथ होती है। इसके बाद 21 लड्डुओं का भोग लगाने की परंपरा है।
इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाए जाते हैं, पांच को दान किया जाता है और बाकी लड्डुओं को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है।
इसके बाद गणेश जी को ॐ वं वक्रतुण्डाय नम: मंत्र के साथ 21 हरे दूर्वा का चढ़ावा चढ़ाया जाता है।
फिर, गणपति की मूर्ति पर केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर पूजा और आरती की जाती है।
फिर मूर्ति को मंत्रोच्चार के साथ मूर्ति विसर्जित कर दिया जाता है।
घर में कैसे स्थापित करें गणपति की मूर्ति?
भक्त विसर्जन के लिए ही नहीं घर के मंदिर में पूजा के लिए भी गणपति की मूर्ति रखते हैं, लेकिन कुछ बातों का ख्याल रखना जरूरी है।
शास्त्रों के मुताबिक गणेश प्रतिमा का मुंह दक्षिण दिशा की तरफ नहीं होना चाहिए।
ध्यान रखना चाहिए कि विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र में उनके बाएं हाथ की ओर सूंड घुमी हुई हो।
दाएं हाथ की ओर घूमी हुई सूंड वाले गणेश जी हठी होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि दाएं सूंड वाले गणपति देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।
लाल बाग के राजा की कहानी
हर साल सबसे ज्यादा चर्चा मुंबई के गणेश उत्सव की होती है, और कहा जाता है कि मुंबई में भी सबसे ज्यादा श्रद्धालु लाल बाग के राजा के पंडाल में जुटते हैं।
दरअसल, श्रद्धालुओं का विश्वास है कि लाल बाग के राजा के दर्शन भर से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। जानते हैं कि इस विश्वास के पीछे क्या है कहानी।
महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में मनाया जाने वाला गणपति उत्सव पूरे देश में प्रसिद्ध है। मुंबई में गणपति उत्सव धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक उत्सव की शक्ल ले चुका है। जगह-जगह गणपति की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं।
गणपति के भक्त घरों में भी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणपति की मूर्ति की स्थापना करते हैं और भाद्रपद चतुर्दशी पर बप्पा को विसर्जित कर आते हैं।
लाल बाग के राजा मन्नतों के राजा कैसे बन गए, इसकी बड़ी ही दिलचस्प कहानी है।
लोग बताते हैं कि एक जमाने में लाल बाग के व्यापारियों का कारोबार घाटे में चलता था। व्यापारी चाहते थे कि लालबाग के एक खुली जगह पर भी बाजार लगने लगे। कहते हैं इसी इच्छा के साथ कुछ व्यापारियों ने लाल बाग के राजा के पंडाल की स्थापना की थी।
लालबाग के राजा की मूर्ति स्थापित हो जाने के बाद व्यापारियों की मनोकामना पूरी होने में वक्त नहीं लगा।
मनोकामना पूरी होने से कुछ ऐसा ही खास रिश्ता जबलपुर के ग्वारीघाट के श्री सिद्ध गणेश मंदिर से भी जुड़ा है। इस मंदिर में बप्पा के भक्त न सिर्फ पूजा अर्चना करते हैं बल्कि बाकायदा अर्जी लगाते हैं। यहां एक साल में 10 हजार से अधिक अर्जियां गणपति के दरबार में आती हैं।
श्री सिद्ध गणेश मंदिर की कथा
सिद्ध गणेश की कथा रामायण से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि सीता स्वंयवर के वक्त सीता जी ने श्रीराम को पति के रूप में पाने के लिए गणेश जी के दरबार में अर्जी लगाई थी।
स्वंयवर में श्री राम ने उस शिवधनुष को तोड़ दिया, जिसे बड़े-बड़े महाबलि भी नहीं तोड़ सके थे। सीता जी की मनोकामना पूरी हो गई। ग्वारीघाट में गणपति के भक्त आज भी उनकी मूर्तियां स्थापित करते हैं और अगले बरस फिर से आ की मनोकामना के साथ मूर्ति विसर्जित करते हैं।
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