॥ श्री हनुमते नम: ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ (13)
अर्थ :- श्रीराम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया कि तुम्हारा यश हजार-मुख से सराहनीय है।
गुढार्थ :- जिस प्रकार भगवान श्रीराम और भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लेकर इस सृष्टि में आकर इसकी महत्ता बढायी।
उसी प्रकार श्री हनुमानजी ने भक्ति की महत्ता बढाई, इसीलिए ऐसे भगवान के परम भक्त के यश की सारा संसार प्रशंसा करता है।
इतना ही नहीं स्वयं परमात्मा उन्हे अपने हृदय से लगाते हैं, यह भक्ति का अंतिम फल है।
भक्ति का यह आदर्श हनुमानजी हमारे सामने रखते हैं, इसीलिए तुलसीदासजी ने लिखा है:-
‘‘सहस बदन तुम्हारे जस गावैं, अस कहि श्रीपति कंठ लगावै।’’
हनुमानजी सीता की खोज करके वापस आते हैं तो राम जी कहते हैं:- ‘हनुमान, तुम्हारे मेरे उपर अगणित उपकार है, ‘‘तुझे क्या दूँ इस जगत में कौनसी चीज तुझे देने जैसी है, कोई भी नहीं, इसीलिए मै तुझे आलिंगन ही देता हूँ।
इसीलिए भगवान राम ने उन्हे कुछ न देते हुए और प्रत्युपकार की भी इच्छा न रखते हुए केवल आलिंगन प्रदान किया है।
इस बात से भगवान राम के अंत:करण में उनको क्या स्थान प्राप्त था यह पता चलता है।
उत्तरकाण्ड श्री राम ने हनुमानजी को ‘पुरुषोत्तम’ की पदवी से विभूषित किया है।
राम जी कहते हैं कि:- 'हनुमान ने ऐसा दुष्कर कार्य किया है कि जिसे लोग मनसे भी नही कर सकते हैं।'
वाल्मीकि रामायण मे लिखा है:-
यो हि भृत्यो नियुक्त: सन् भत्र्रा कर्मणि दुष्करे।
कुर्यात् तदनुरागेण तमाहु: पुरुषोत्तमम्॥
ऐसा कहकर श्रीराम हनुमानजी को पुरुषोत्तम की पदवी देते हैं।
धन्य है हनुमान जी, जिन्होने वानर होते हुए भी प्रभु के स्वमुख से पुरुषोत्तमकी पदवी प्राप्त करके उनके बराबर का स्थान प्राप्त किया है।
जिन्होने प्रभु को जीवन अर्पण करके सार्थकता का अनुभव किया और जो लोग विश्वंभर पर उपकार करने जगत में आये, वे महान हैं।
हनुमानजी की तरह जो ‘नरोत्तम’ बन गये हैं उनको नमस्कार है।
‘नरोत्तम’ कौन है...?
प्रभु को जिसने जीत लिया है वह ‘नरोत्तम’ है।
संसार में आकर जिन्होने प्रभु को जीत लिया है उनको नमस्कार है।
प्रभु को जीतने वाले ये भक्त कितने महान होंगे, उन्होने निष्काम भगवान को सकाम बना दिया।
भगवान निष्काम है, निष्काम भगवान में भी जो कामना खडी करते हैं, वे ‘नरोत्तम’ हैं।
श्री हनुमानजी ऐसे ही नरोत्तम है, इसीलिए तुलसीदासजी ने लिखा है:- ‘‘सहस बदन तुम्हरो जस गावै, अस कहि श्रीपति कंठ लगावै।’’
यदि हमें भी प्रभु का आलिंगन चाहिए तो श्री हनुमान जी की तरह भक्ति करनी होगी तथा उनकी भांति ज्ञान, कर्म और भक्ति का जीवन में समन्वय लाना होगा।
ज्ञानी कर्मयोगी भक्त को भगवान प्रत्यक्ष मिलने दौडते है, जिस प्रकार भक्त पुंडलिक को मिलने भगवान स्वत: दौडकर उनके द्वारपर आये।
संत एकनाथ के यहाँ तो जगत् की चिद्घन शक्ति सगुण-साकार होकर घरका काम करती और स्वयं भोजन बनाकर खिलाती थी, वे कितने भग्यशाली होंगे?
संत एकनाथ ने भगवान का अनुपम कार्य कर उनपर जो ऋण चढाया था उससे उऋण होने के लिये ही भगवान ने उनकी चाकरी की।
इस भारत वसुन्धरा में अनेक प्रभु भक्त हुये हैं, परन्तु हनुमानजी भक्त सम्राट हैं।
भगवान राम ने स्वयं उन्हे अपने कंठ से लगाया है ऐसा तुलसीदास जी ने लिखा है।
जय जय सिया राम भक्त हनुमानजी